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लेखनी कहानी -07-Nov-2022 उपचुनावों का संदेश

3 नवंबर को 6 राज्यों की 7 विधान सभा सीटों पर मतदान हुआ था जिसके परिणाम 6 नवंबर को घोषित हो गये हैं । इन 7 विधान सभा सीटों में से 4 भारतीय जनता पार्टी,  1 शिव सेना (उद्धव गुट), 1 राजद और एक टी आर एस ने जीती है । वैसे तो यह एक बहुत छोटा चुनाव है जिसका कोई खास महत्व नहीं है मगर राजनीति में जिस तरह से पिछले 5-6 महीनों में जो उठापटक हुई है उससे इन उपचुनावों के नतीजों का महत्व बढ गया है । ये उपचुनाव क्या संदेश दे रहे हैं , आइए इसका एक निष्पक्ष विश्लेषण करते हैं । 
सबसे पहले हम बात करते हैं बिहार की । बिहार की मिट्टी में राजनीति रची बसी है । जितना जाति पाँति बिहार में हैं उतनी अन्यत्र कहीं नहीं है । बिहार की खोपड़ी भी बहुत तेज चलती है जिसका नमूना आए दिन देखने को मिलता रहता है । 

जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से बिहार में तीन नेता पैदा हुए । लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और सुशील मोदी । राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बनाने और उसे बनाये रखने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने बहुत बड़ी बड़ी कुरबानियां दी हैं । महाराष्ट्र में शिवसेना और पंजाब में अकाली दल की "पिछलग्गू" बनकर रह गई थी बीजेपी । इसी तरह सन 2020 के चुनावों में लगभग दुगनी सीटों पर जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री का पद नीतीश कुमार को थाली में सजाकर दे दिया था मगर कुछ लोगों का पेट फिर भी नहीं भरता है । बीजेपी ने बहुत से समझौते भी किये थे जद (यू) से और लगभग अपने आप को खत्म सा कर लिया था उसने बिहार में । मगर नीतीश बाबू चाहते थे कि बीजेपी आत्महत्या कर ले और वे मनमानी करते रहें । पर अब बीजेपी ने पालकी उठाना बंद कर दिया है । किसी के चाहने से तो कुछ होता नहीं है न । इस पृष्ठभूमि में ये उपचुनाव हुए जब बीजेपी और जद(यू) एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बन गये थे ।

नीतीश कुमार जी पाला बदलने के खेल में पूर्णत : पारंगत हैं । थोड़े दिनों पहले ही बीजेपी के खूंटे से रस्सी तुड़ाकर वे राजद के खेमे में प्रविष्ट हुए हैं । यहां की दो विधान सभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे । एक सीट तो बाहुबली अनंत सिंह (राजद) को सजा होने के कारण रिक्त हुई थी । यह सीट अनंत सिंह की "घरेलू" सीट है । यहां से वे 6-7 बार जीते हैं । मतलब कभी हारे नहीं हैं । उनकी दबंगई से सब लोग वाकिफ हैं । यहां से उन्होंने अपनी पत्नी नीलम देवी को खड़ा किया था । राजद के साथ जद (यू) , कांग्रेस, हम , सभी वामपंथी दल और अन्य क्षेत्रीय दल भी साथ थे । मोकामा में अनंत सिंह का व्यक्तिगत वोट भी है । इस समय सरकार भी राजद और जद (यू) की है । उसके बावजूद बीजेपी ने वहां पर कड़ी टक्कर दी और वह मात्र 16-17 हजार वोटों से हारी है । जब अनंत सिंह जीते थे तब 35000 वोटों से जीते थे तब बीजेपी के साथ जद (यू) भी था । इस बार बीजेपी ने अकेले ही चुनाव लड़ा और हार का अंतर आधा कर लिया है । यह एक बड़ी उपलब्धि है बीजेपी की । 

इसी तरह गोपालगंज की सीट का विश्लेषण करते हैं तब ध्यान में आता है कि यहां तो बीजेपी केवल 1800 मतों से विजयी हुई है । पर हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि अब बीजेपी अकेली है और बाकी सब एक तरफ हैं । उसके बावजूद बी जे पी ने जीत हासिल की है, यह उल्लेखनीय है । "इको सिस्टम" के इस प्रचार पर कि राजद और जद (यू) के साथ आने से बीजेपी आंधी में तिनके की तरह उड़ जायेगी, ऐसे "खैरातियों" को इस नतीजे से बड़ा धक्का लगा है । अब उनके ऐजेण्डे का क्या होगा ? बिहार ने तो उत्तर प्रदेश दोहरा दिया और अब 2024 की झांकी 2022 में ही दिखला दी है । अब सारे लिब्रांडु औवैसी पर पिल पड़े हैं । उसकी पार्टी के अभ्यर्थी ने करीब 12000 मत प्राप्त कर लिये हैं । इस से एक बात तो तय हो रही है कि मुसलमान औवैसी को अपना नेता मानने लगे हैं और कॉग्रेस, सपा, राजद, वगैरह से दूरी बनाने लगे हैं । 

तेलंगाना की मुनुगोंडा सीट बहुत चर्चा में रही है । तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति ने 2018 के आमचुनावों में एकतरफा जीत हासिल कर एक इतिहास बनाया था । थोड़ी बहुत सीटें कॉग्रेस ने जीती थी लेकिन मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने उनके विधायकों को भी अपनी पार्टी में मिला लिया था । यहां बीजेपी का कोई वजूद नहीं था । आमचुनाव में उसे इस सीट पर महज 10000 वोट मिले थे और कॉग्रेस के उम्मीदवार को करीब 90000 वोट मिले थे । टी आर एस को भी लगभग 65000 वोट मिले थे । मगर इस उपचुनाव में टी आर एस को 97000 और बीजेपी को 87000 और कॉग्रेस को 24000 वोट मिले हैं । टी आर एस का पूरा मंत्रिमंडल, समस्त सांसद और विधायकों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी और एक महीने तक गांवों में डेरा डाले पड़े रहे थे । स्वयं मुख्यमंत्री एक गांव के प्रभारी बने रहे । तब जाकर यह जीत हासिल हुई है । वर्ष 2023 में जब आमचुनाव होंगे तब लड़ाई टी आर एस और बीजेपी में होगी । दूसरे राज्यों की तरह यहां पर भी अब कॉग्रेस का बिस्तर गोल हो गया है । अगले चुनावों में बीजेपी की सरकार भी बन सकती है । 

अब बात करते हैं हरियाणा के आदमपुर उपचुनावों की । पहले यहां से कॉग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के वंशज कुलदीप विश्नोई कॉग्रेस के टिकिट पर चुनाव जीते थे । वे दलबदल करके बीजेपी में आ गये इसीलिए उनके इस्तीफा देने से यह सीट खाली हुई थी । उन्होंने अपने पुत्र भव्य विश्नोई को बीजेपी से टिकिट दिलवा दिया । मैदान में अरविंद केजरीवाल भी पूरे जोर शोर से ताल ठोक रहे थे और जैसा वो अब तक करते आये हैं फर्जी सर्वे करवा के प्रचण्ड जीत के दावे कर रहे थे । बिकी हुई मीडिया उसके विज्ञापनों के टुकड़ों को निगलकर उसका गुणगान करती रही और उसके उम्मीदवार सतिन्दर सिंह को भारी मतों से जीता हुआ दिखा रही थी उसे इस उपचुनाव में केवल 3420 मत हासिल हुए हैं जबकि जमानत बचाने के लिए करीब 20000 मत चाहिए थे । यह नतीजा अरविंद केजरीवाल, उसके फर्जी सर्वे और भ्रष्ट मीडिया के मुंह पर एक करारा तमाचा है । अरविंद केजरीवाल यही प्रोपेगेंडा गुजरात में रच रहे हैं और वहां पर भी कुछ इसी तरह के परिणाम आने की संभावना है । बहरहाल, आदमपुर में कॉग्रेस ने भारी भरकम उम्मीदवार जयप्रकाश (जेपी) को मैदान में उतारा था मगर भारतीय जनता पार्टी ने यहां पर 51.32% मत हासिल कर लगभग 16000 मतों से विजय प्राप्त कर ली है । 

अब बात करते हैं महाराष्ट्र के अंधेरी ईस्ट विधान सभा क्षेत्र की । यहां पर शिव सेना (उद्धव) के विधायक रमेश लटके की मृत्यु होने से यह उपचुनाव हुआ । उद्धव ठाकरे ने रमेश लटके की पत्नी ऋतुजा लटके को अपना उम्मीदवार बनाया । बीजेपी ने भी अपना प्रत्याशी उतार दिया । बाद में शिव सेना और शरद पंवार जैसे बड़े नेताओं ने कहा कि एक विधवा के विरुद्ध उम्मीदवार नहीं उतारना चाहिए । यद्यपि इन नेताओं ने पूर्व में एक विधवा के विरुद्ध उम्मीदवार उतार रखे थे मगर ईको सिस्टम को वह दिखाई नहीं देता है । बीजेपी ने अपने उम्मीदवार से नाम वापिस करवा लिया । अब केवल 7 उम्मीदवार ही मैदान में रह गए थे जिनमें 6 निर्दलीय थे । लगभग 32% मत पड़े । यहां पर आश्चर्य जनक रूप से NOTA को 12806 वोट आये और इस तरह नोटा फिर से दूसरे नंबर पर रहा । शिव सेना की यह विजय कोई उल्लेखनीय नहीं है क्योंकि सामने मैदान खाली था । 

और अंत में उत्तर प्रदेश  की गोला गोकर्णनाथ विधान सभा क्षेत्र की बात करते हैं । यह सीट लखीमपुर खीरी जिले में आती है । किसान आंदोलन में किस तरह लखीमपुर खीरी को बदनाम किया गया और ईको सिस्टम ने किस तरह प्रोपेगेंडा किया, सबको पता है मगर आमचुनावों में सभी सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार विजयी रहे । यहां पर बीजेपी के मृत विधायक के पुत्र को प्रत्याशी बनाया गया और परिणाम आश्चर्य जनक रहा । पिछली जीत से भी बड़ी जीत हुई है इस बार । जीत का अंतर 34000 से अधिक रहा । 

इन सब परिणामों से एक बात स्पष्ट है कि जनता में भारतीय जनता पार्टी की स्वीकार्ता सब जगह धीरे धीरे बढ रही है और कॉग्रेस धीरे धीरे "साफ" हो रही है । एक बात बड़ी मजेदार थी कि इन उपचुनावों में हरियाणा को छोड़कर अन्य किसी भी राज्य में कॉग्रेस कहीं नजर नहीं आई । 

दूसरी बात यह है कि जिस आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब में सबका सूपड़ा साफ कर दिया था , वह इन उपचुनावों में कहीं दिखाई नहीं दी । यहां तक कि हरियाणा जो कि अरविंद केजरीवाल का गृह राज्य है और उसके गांव से लगती हुई आदमपुर सीट पर जहां अरविंद केजरीवाल ने भरपूर प्रचार किया था और फर्जी सर्वे द्वारा अपनी प्रचंड जीत का दावा किया था उसे महज 3000 वोट मिले हैं । इसका मतलब है कि लोग इन्हें पहचान गये हैं और काठ की हांडी अब चढने वाली नहीं है । 

तीसरी बात यह है कि शिव सेना के सामने कोई प्रत्याशी नहीं था इसलिए उसके दम खम का पता अभी चल नहीं पाया है । आगामी BMC चुनावों में ही जमीनी हकीकत पता चल पायेगी । 
चौथी बात यह है कि बिहार में जो गठबंधन हुआ था उसका प्रभाव कहीं नजर नहीं आया है । नीतीश कुमार अब फुंके हुए कारतूस नजर आ रहे हैं । तेजस्वी में भी कहीं पर भी तेज नजर नहीं आया है । ओवैसी मुहम्मद अली जिन्ना बनने की ओर अग्रसर है । 
पांचवी बात यह है कि तेलंगाना में अगला चुनाव टी आर एस बनाम भाजपा होने जा रहा है । कॉग्रेस वहां से साफ हो रही है । 
छठी बात यह है कि उत्तर प्रदेश में योगी बाबा का जलवा और बढता जा रहा है । इन उपचुनावों ने 2024 की भविष्य वाणी कर दी है । 

श्री हरि 
7.11.22 


 

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7 Comments

Palak chopra

09-Nov-2022 04:18 PM

Shandar 🌸🙏

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Teena yadav

07-Nov-2022 08:14 PM

OSm

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Khan

07-Nov-2022 07:34 PM

Bahut khoob 😊🌸

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